सड़क दुर्घटनाओं में घायलों को अस्पताल ले जाने या पुलिस को
सूचना देने वाले सज्जनों के संबंध में सरकार ने एक मानक संचालन
प्रक्रिया अधिसूचित की है। इसमें ऐसे मददगार सज्जनों के साथ
सम्मानजनक व्यवहार कने से संबंधित निर्देश दिए गए हैं। अधिसूचना
के मुताबिक जब तक मदद करने वाला चश्मदीद होने का दावा नहीं
करता तब तक उस पर व्यक्तिगत जानकारी जैसे पूरा नाम, पता और
फोन नं. इत्यादि साझा करने का दबाव नहीं डाला जाएगा।
सड़क परिवहन मंत्रालय द्वारा जारी इस अधिसूचना के तहत मदद
करने वाला अगर विटनेस बनना चाहता है और वह पूछताछ के लिए
पुलिस स्टेशन नहीं आना चाहता तो पुलिस ऐसे स्थानों पर ही
उससे पूछताछ करेगी जो विटनेस के लिए सुविधाजनक हों। जैसे कि
विटनेस के घर या ऑफिस पर। साथ ही पुलिस वर्दी के बजाय
साधारण कपड़ों में ही उसके घर या ऑफिस पर पूछताछ करने जा
सकेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को भले और मददगार लोगों की
सुरक्षा हेतु कदम उठाने और उनकी जानकारी कोर्ट को सौंपने का
निर्देश दिया था। इस निर्देश के 15 दिनों के भीतर ही 10 जनवरी
को सड़क परिवहन मंत्रालय ने यह अधिसूचना जारी कर दी। इसकी
जानकारी सबसे पहले टाइम्स ऑफ इंडिया के हवाले से ही मिली।
मानक प्रक्रिया के अनुसार यदि मददगार पूछताछ के लिए पुलिस
स्टेशन आने को तैयार हो जाता है तो उससे सारी पूछताछ
व्यवस्थित और समय- बद्ध तरीके से एक मुलाकात में ही की
जाएगी। अगर जांच अधिकारी संबंधित व्यक्ति की भाषा समझने
में सहज नहीं है तो पूछताछ के लिए एक अनुवादक की व्यवस्था
करना भी जांच अधिकारी का ही दायित्व होगा।
भारत में सालाना 1.4 लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में मरते हैं।
सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से कम से कम 50 प्रतिशत मौतों
को टाला जा सकता है अगर घायलों को दुर्घटना के एक घंटे के
भीतर ही अस्पताल में भर्ती करा दिया जाए। इस शुरुआती एक घंटे
को 'गोल्डन आवर' कहा जाता है।
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