आखिर वही हुआ जिसका डर था और शायद अपेक्षा भी। ऑस्ट्रेलिया के सामने खेली जा रही मौजूदा वन डे सीरीज के पहले तीन मैच के बाद टीम इंडिया ने ये साबित कर दिया है की विदेशी भूमि पर भारत की तरह वन डे मैचों में फ्लेट विकेट मिलने पर भी भारतीय टीम को अक्सर नाकामी ही हाथ लगती है। पहले 2 मैच में 300 से ज्यादा रन और तीसरे मैच में 290 से ज्यादा स्कोर खड़ा करने के बाद भी भारतीय टीम तीनो में से एक भी मैच जीत नहीं पाई और सीरीज के पहले तीन मैच में ही लगातार हार के साथ आसानी से सीरीज भी गंवा दी। यकीनन इस जीत की कंगारुओं ने ने भी कल्पना नहीं की होगी।
ये सही है कि टी20 के प्रचलन के बाद से 280-300 रन जीत की गारंटी वाला स्कोर नहीं रहा, पर प्रतिद्वंदी टीम पर दबाव और कड़ी चुनौती के लायक तो हैं ही। हालांकि भारतीय टीम कोई भी मैच में बड़े स्कोर का दबाव नहीं बना पाई। हर मैच के बाद कप्तान और टीम मैनेजमेन्ट की और से बयान आया कि हमने 15-20 रन ज्यादा बनाए होते तो शायद जीत जाते।
वैसे ये बयान पिछले पांच सालो में कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी ने कई बार दोहराया है, और साथ ही साथ उन्होनें ये भी स्वीकार किया की भारतीय बॉलिंग लाइन अप प्रतिद्वंदी टीम के 10 विकेट चटकाने ये टार्गेट तक पहुंचने से रोकने में मजबूत नहीं है, पर सबसे बडी अचरज की बात ये रही की पिछले कुछ सालों की तरह इस बार भी लोअर मिडल ऑडर का आसानी से विकेट फेंक देना, फिल्डिंग में आलस भरा रवैया और विकेट न लेने के साथ रन लुटाने जैसी लगातार एक समान गलतियां दोहराई गईं और उन गलतियों कुछ सुधार करके अच्छा खेल खेलने के बदले वही बयान भी बेशर्मी से दोहराए गए।
पिछले 5 सालों में विदेशी भूमि पर कुछ इस तरह प्रदर्शन किया है टीम ने - 3 अप्रैल 2011 से लेकर 17 जनवरी, 2016 तक कुल मिलाकर 36 सीरीज (वन डे, टेस्ट मैच, टी20) में से सीर्फ 13 श्रृंखला में विजय। ये आंकड़े हैं 2011 में वर्ल्ड कप जीतने के बाद से लेकर अब तक भारत ने विदेशी भूमि पर खेली श्रृंखलाओ के। यानी की कुल मिलाकर भारत ने पिछले पांच सालो में विदेशी भूमि पर खेली गई 36 श्रृंखलाओ में से सीर्फ 13 यानी की एक तिहाई श्रृंखलाओ में ही जीत हासिल की है, जबकि बाकी श्रृंखलाओ में से ज्यादातर में टीम इंडिया की हार हुई है और कुछ श्रृंखला ड्रॉ करकर संतोष मानना पड़ा है।
इनमें से भी यदि वेस्ट इन्डीज, जिम्बाब्वे और बांग्लादेश में जीती हुई 8 श्रृंखलाओ और श्रीलंका में वन डे और टी20 सीरीज जीत के आंकड़े निकाल दिए जाएं तो पिछले पांच साल में भारत ने खेल के सभी प्रारूपों में मिलाकर सीर्फ तीन ही बड़ी सीरीज जीती है, वो है 2013 में इग्लैंड में खेली गई चैम्पियन्स ट्रॉफी, 2014 में इंग्लैंड में खेली गई वन डे सीरीज और 2015 में श्रीलंका में खेली गई टेस्ट सीरीज, यानी की 2000 के दशक में करीबन हरेक देश में सफलता हासिल करने वाली टीम इंडिया का प्रदर्शन और ज्यादा बेहतर होने के बदले 2010 के दशक में दिनों-दिन नीचे गिरता चला गया है।
इन 5 सालों के दौरान भारत ने इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और साउथ अफ्रीका दौरे पर एक भी मैच न जीतने की और 2015 में बांग्लादेश के खिलाफ वन डे सीरीज हारने की शर्मनाक उपलब्धि भी हासिल की है। 3 बार वर्ल्ड कप (2 बार वन डे वर्ल्ड कप और 1 बार टी20 वर्ल्ड कप) और 2 बार चैम्पियन्स ट्रॉफी जीतने वाली भारतीय टीम को वन डे मैचों में ऑस्ट्रेलिया के बाद सबसे मजबूत और संतुलित टीम माना जाता है, पर आंकड़े कुछ अलग ही चित्र बतातें हैं। 2011 के वर्ल्ड के बाद से भारतीय टीम कुल 3 वर्ल्ड कप गवां चुकी है (2012 और 2014 में टी20 वर्ल्ड कप और 2015 में वन डे वर्ल्ड कप) और जब बात विदेशी दौरो की आती है, तो भारतीय टीम ने अक्सर निराश ही किया है।
टीम सिलेक्शन पर भी उठ रहे हैं सवाल : कुछ दिनों पहले जब भारतीय सिलेक्टर्स ने ऑस्ट्रेलियाई दौरे के लिए टीम की घोषणा की, तब हर बार की तरह प्रेस कॉफ्रेंस में टीम को बेहद संतुलित और होम टीम को कड़ी चुनौती देने के काबिल बताया। इनमें वो खिलाड़ी भी शामिल थे, जो विदेशी भूमि पर एक लंबे अनुभव के बाद भी अक्सर नाकामी के साथ ही लौटे हैं।
ऑस्ट्रेलिया दौरे से पहेले पिछले 10 मैच में सिर्फ 236 रन बनाने वाले शिखर धवन कोई खास प्रदर्शन के बिना वन डे और टी20 टीम का हिस्सा बन गए, तो विदेशी दौरों पर ऑलराउन्डर के तौर पर लगातार आलोचना झेल रहे रविन्द्र जाडेजा भी टीम में स्थान पाने में कामयाब रहे, जबकि वन डे मैचों में अब तक 45 की औसत से 952 रन के साथ लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे अंबाती रायडु को बाहर का रास्ता दिखाया गया।
घरेलू क्रिकेट में लगातार अच्छा प्रदर्शन करने के चलते एक लंबे अरसे बाद युवराज की टीम में वापसी तो हुई पर सिर्फ टी20 सीरीज के लिए, साथ ही साथ कुछ महीनों पहले ही रिटायरमेन्ट का संकेत देनेवाले आशिष नहेरा को भी अचानक से ही डाउन अंडर का टी20 वीजा मील गया।
टीम के साथ सिलेक्टर्स ने धोनी को टी20 वर्ल्ड कप के अंत तक मर्यादित ओवर का कप्तान बनाए रखने की भी घोषणा करके विराट कोहली को मर्यादित ओवरों का कप्तान बनाए जाने की अफवाहों पर पूर्णविराम रख दिया, शायद सिलेक्टर्स भूल गए थे कि धोनी की कप्तानी में भारत ने आखरी श्रृंखला करीबन सवा साल पहले वेस्ट इंन्डीज के खिलाफ जीती थी। इसके बाद हर श्रृंखला में उन्हें हार का ही मुंह देखना पड़ा।
कांगारु टीम से तुलना : डेविड वॉर्नर, ऐरोन फिंच, स्टीवन स्मीथ, ज्योर्ज बेईली, ग्लेन मेक्सवेल, शोन मार्श, मिचेल मार्श, ज्योर्ज फुकनर, मेथ्यु वेड. मोजूदा श्रृंखला में भारत के खिलाफ खेल रहे ये वो बेट्समेन हैं, जो कभी भी मैच का पासा पलटने का मादा रखते हैं और सीरीज के पहले तीन मैचों में उन्होनें ये कर भी दिखाया है। बॉलर्स की बात की जाये तो ऑस्ट्रेलिया ने अपने नियमित बॉलर मिचेल स्टार्क को चोट के चलते इस श्रृंखला से आराम दिया है, पर ऑस्ट्रेलियाई टीम के सभी खिलाड़ियों ने अपनी भूमिका बखूबी निभाई है। बेट्समेनों ने अच्छी बेटिंग के साथ-साथ रन रोकने और विकेट चटकाने के लिए बॉल पर भी हाथ आजमाया है, तो बॉलर्स ने जेन्युईन बैट्समेन की अदा से बेटिंग भी की है।
दूसरी ओर भारतीय टीम की बात की जाए तो पहले तीन मैचों में रोहित शर्मा, विराट कोहली और अजिंक्य रहाणे के अलावा कोई भी खिलाड़ी अपनी भूमिका में खरा नहीं उतरा, कभी भारतीय क्रिकेट टीम के बारे में बिशन सिंह बेदी ने कहा था की भारतीय क्रिकेट टीम को समुंदर में फेंक देनी चाहिए, तो कभी मोहिन्दर अमरनाथ ने कहा था, कि भारतीय सिलेक्टर्स जोकरो की गैंग है, शायद भारतीय टीम उन सीनियर खिलाड़ियों की बातों को सार्थक करने में व्यस्त है।