लगातार आ रही गोकशी की खबरों
और इससे बिगड़ रही कानून व्यवस्था पर हाई कोर्ट ने सख्त
टिप्पणी की है। हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा है कि अगर
राज्य सरकार और गोशाला आयोग अपना दायित्व ठीक से
निभाएं तो सूबे में गोकशी और इससे आए दिन होने वाली कानून
व्यवस्था की स्थिति से निपटा जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि
गाय हमारी अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण येागदान दे सकती हैं। करना
बस इतना है कि गोमूत्र और गोबर को बायोगैस, दवाइयों और अन्य
प्रकार से उपयोग के मकसद से ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने के
लिए कम्पनियों, एनजीओ और आमजन को प्रेरित किया जाए।
कोर्ट ने कहा कि गोवध अधिनियम और यूपी गोसेवा अधिनियम
के प्रावधानों के तहत स्पष्ट है कि गाय चाहे कितनी बूढ़ी, बीमार
या अयोग्य ही क्यों न हों, उन्हें काटा नहीं जा सकता। कोर्ट ने
पकड़े जाने वाले गोवंश का परीक्षण न कराए जाने का भी
संज्ञान लिया। संजीदगी से करें काम कोर्ट ने राज्य सरकार, मंडी
परिषद ऐनिमल हसबेंड्री डिपार्टमेंट और गोशाला आयोग के
अफसरों को तलब किया। कोर्ट ने उन्हें सख्ती से कहा कि वे इस
मामले में टालू रवैया छोड़कार काम संजीदगी से करें। जस्टिस
सुधीर कुमार सक्सेना की बेंच ने इम्तियाज की ओर से अलग-अलग
दायर जमानत याचिकाओं को स्वीकार करते हुए ये टिप्पणी कीं।
कोर्ट ने इस बात पर नाराजगी जताई कि दुधारू न रह जाने पर लोग
गाय को या तो खुला छोड़ देते हैं या किसी को बेच देते हैं। वह यह
भी नहीं सोचते कि खरीदने वाला गाय को कहां और किस लिए ले
जा रहा है। कोर्ट ने कहा कि पर्याप्त गोशाला न होने के कारण
वहां भी ऐसी गाय को नहीं लिया जाता। ऐसे में जरूरी है कि
गोशालाएं बढ़ायी जाएं। ऐसी व्यवस्था हो कि लोग गोपालन से
ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा सकें। सड़क पर गाय छोड़ने वालों
पर हो केस कोर्ट ने गाय और अन्य पशुओं को सड़क पर छोड़ने वाले
मालिकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने
कहा कि गाय को कूड़े से पालिथीन में बचे जूठन को खाने के लिए
छोड़ना गायों के साथ क्रूरता है।
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