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बीजेपी ने सरकार का भगवाकरण कर दिया: तीस्ता

सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने केंद्र पर सरकार और
संवैधानिक संस्थाओं का भगवाकरण करने का आरोप लगाया है।
तीस्ता ने कहा कि केंद्र की सत्ता में आने के 18 महीनों के अंदर
ही बीजेपी ने इन संस्थाओं का भगवाकरण करने में कामयाबी
हासिल कर ली है। मौजूदा दौर के भारत की सांप्रदायिक
राजनीति के मुद्दे पर आयोजित एक सेमिनार के दौरान तीस्ता ने
ये बातें कहीं।
तीस्ता ने अपने संबोधन के दौरान कहा कि महात्मा गांधी के
साथ-साथ गोविंद पनसारे, नरेंद्र दाभोलकर और ए.एम. कलबुर्गी
की हत्या करने वाले उसी विचारधारा के हैं, जिसमें राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ विश्वास रखती है।
तीस्ता रविवार को फोरम फॉर डिमॉक्रेसी एंड कम्यूनल एमिटी
और इस्तकलाल उर्दू नाम की पत्रिका द्वारा आयोजित एक
राष्ट्रीय सेमिनार में बोल रही थीं। इस सेमिनार का विषय था,
'मौजूदा दौर में भारत में काबिज सांप्रदायिक राजनीति का
सामना कैसे किया जाए?' रविवार को बाबरी मस्जिद विध्वंस
की 23वीं बरसी भी थी। तीस्ता ने बीजेपी के सांसदों,
विधायकों, मंत्रियों व एक राज्यपाल द्वारा दिए गए हालिया
बयानों का जिक्र करते हुए कहा, 'जो हाशिये पर होने चाहिए थे,
वही बीजेपी सरकार की मुख्धारा में शामिल हैं। वे इस देश के
संवैधानिक और सरकारी संस्थाओं में अहम पदों पर नियुक्त हैं।'
तीस्ता ने कहा, 'हैदराबाद में बीजेपी के एक विधायक ने कहा कि
जो भी व्यक्ति बीफ फेस्टिवल का आयोजन करता है, मैं उसकी
हत्या करना चाहता हूं। गृह राज्यमंत्री किरेन रिजिजू ने गलत
आंकड़े जारी कर साबित करने की कोशिश की कि 2014 में
बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से देश में सांप्रदायिक संघर्ष और
हत्याएं घटकर आधी हो गई हैं। त्रिपुरा के राज्यपाल एक 'प्रचारक'
हैं। उन्हें इतने अहम संवैधानिक पद पर नियुक्त किया गया है, लेकिन
वह संघ की भाषा बोलते हैं।'
त्रिपुरा के राज्यपाल तथागत रॉय ने ट्वीट कर लिखा था कि
1993 बम धमाके के दोषी याकूब मेमन के जनाजे में शामिल होने
वाले लोगों में से ज्यादातर लोगों में आतंकवादी बनने की
संभावना है।'
तीस्ता ने सेमिनार में अपने संबोधन के दौरान कहा, ' महात्मा
गांधी की ही तरह गोविंद पनसारे, नरेंद्र दाभोलकर और
एम.एम.कलबुर्गी अपने विचारों से संघ की विचारधारा को चोट
पहुंचा रहे थे। इन तीनों हत्याओं में की गई पुलिस जांच अभी भी
पूरी नहीं हो सकी है, लेकिन सरकार ने पहले ही संसद में कह दिया
कि इन तीनों हत्याओं का आपस में कोई लेना-देना नहीं है। यह
घबराहट उनके डर को साफ तौर पर जाहिर करती है।'
इस सेमिनार में पत्रकार और पूर्व सांसद अहमद सईद मलिहाबादी,
वकील व कार्यकर्ता भारती मुसद्दी, मौलवी कारी फजलूर
रहमान, सर्जन अब्दुल हई और सामाजिक कार्यकर्ता जगमोहन
गिल भी शामिल हुए थे।