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मनमोहन जैसे क्यों लगने लगे हैं मोदी?

नरेंद्र मोदी सरकार के तीसरे बजट से क्या निष्कर्ष
निकला है?
स्पष्ट है कि बजट का लक्ष्य कृषि उपज को बढ़ाने और ग्रामीण इलाक़ों
के ग़रीबों को रिझाना है. सरकार ने ग्रामीण विकास पर 87,000
करोड़ रुपये ख़र्च करने का प्रस्ताव किया है और किसानों को ज़्यादा आय का वादा किया
है.
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा, "हमें खाद्य सुरक्षा से आगे
सोचने की ज़रूरत है और अपने किसानों को आय की सुरक्षा का
भरोसा दिलाने की ज़रूरत है. इसलिए सरकार अपना ध्यान कृषि और ग़ैर-कृषि
क्षेत्रों पर केंद्रित कर रही है ताकि किसानों की आय 2022
तक दोगुनी की जा सके."
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इसमें कोई अचरज नहीं कि कृषि वृद्धि दर पिछले दो सालों से ख़राब मानसून
के चलते बहुत कम, 0.5 फ़ीसदी प्रतिवर्ष, रहा है. माना जा
रहा है कि इस साल यह 1.2 फ़ीसदी रहेगा जो भारत
की कुल वृद्धि दर 7.6 फ़ीसदी से बहुत कम है.
किसानों की बाज़ार तक पहुंच को बेहतर करने, सिंचाई विहीन
खेतों में फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए खाद का समझदारी पूर्ण इस्तेमाल
शुरू करने और दालों के उत्पादन को प्रोत्साहन देन की योजनाएं हैं.
यह सारी अच्छी चीज़ें हैं.
मोदी सरकार के सत्ता में आने से पहले 2014 में प्रधानमंत्री
मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को सत्ता में एक दशक हो
गया था.
मनमोहन सरकार ने किसानों के कर्ज़ माफ़ कर दिए और ऐतिहासिक केंद्रीय
रोज़गार गारंटी योजना शुरू की, जो सरकार की
गरीबों के लिए सबसे महत्वाकांक्षी योजना थी. इसके
साथ ही खाद्य सुरक्षा विधेयक भी लाई, जिससे भोजन का
अधिकार क़ानूनी हो जाता.
जुलाई 2014 में मोदी ने खाद्य सुरक्षा योजना की आलोचना करते
हुए कहा, "दिल्ली में बैठी सरकार समझती है कि
सिर्फ़ खाद्य सुरक्षा विधेयक लाने से आपकी थाली में खाना
भी आ जाएगा."
फ़रवरी 2015 में उन्होंने रोज़गार गारंटी योजना का मज़ाक उड़ाते
हुए कहा कि वह सुनिश्चित करेंगे कि यह कभी बंद न हो.
उन्होंने कहा, "यह आपके नाकाम होने का सबूत है. इतने साल सत्ता में रहने के
बाद भी आप गरीबों के लिए सिर्फ़ इतना ही कर पाए
कि वह महीने में कुछ दिन गड्ढे खोदें."
रोज़गार गारंटी योजना के तहत एक वित्त वर्ष के कम से कम 100 दिन
हर परिवार के वयस्क व्यक्ति को काम की गारंटी दी
जाती है.
समस्या यह है कि यह एक और ऐसी योजना बन गई है जहां बिना
किसी महत्वपूर्ण संपत्ति निर्माण के बस पैसा दे दिया जाता है.
लेकिन मोदी सरकार ने यहां एक यू-टर्न लेते हुए इस योजना के लिए
2016-17 में आज तक का सबसे ज़्यादा 38,500 करोड़ रुपये का आबंटन किया है.
यही वजह है कि मोदी अब और ज़्यादा मनमोहन सिंह जैसे
लग रहे हैं.
वह मनमोहन सिंह से अच्छे सेल्समैन हैं और उनके कार्यकाल को पुरानी
सरकार की तरह भ्रष्ट भी नहीं माना जाता.
मोदी ने वादा किया था, "न्यूनतम सरकार, अधिकतम काम". लेकिन रोज़गार
गारंटी योजना को अधिकतम आबंटन के साथ ही उनका यह वादा
हवा हो गया है, कम से कम अभी.
खाद्य सुरक्षा योजना के तहत ग़रीबों को सस्ता चावल और गेहूं उपलब्ध
करवाया जाता है.
लेकिन सरकार ने खुद स्वीकार किया है कि सरकारी लाइसेंस
वाली 'उचित दर की दुकान' से बांटे जाने वाला 54
फ़ीसदी गेहूं, 48 फ़ीसदी
चीनी और 15 फ़ीसदी चावल
चोरी हो जाता है और खुले बाज़ार में बिक जाता है.
बहरहाल देश को नुक़सान करने वाली इस चोरी को रोकने के कोई
प्रयास नहीं हो रहे हैं.
इसके अलावा भारत को ज़रूरत है बहुत सारी नौकरियां पैदा करने
की. दो साल पहले मोदी ने एक करोड़ नौकरियां देने का वादा किया
था.
भारत में सिर्फ़ 3 करोड़ लोग संगठित क्षेत्र में काम करते हैं. और करीब
58 फ़ीसदी आबादी कृषि पर निर्भर हैं जो
जीडीपी का सिर्फ़ 16-18
फ़ीसदी ही है.
इससे पता चलता है कि भारत के अनुत्पादक क्षेत्र में बहुत बड़े पैमाने पर ज़्यादा
लोग काम कर रहे हैं और अन्य क्षेत्रों में नौकरियां पैदा करने की ज़रूरत
है ताकि लोग कृषि क्षेत्र से अलग जा सकें. और स्पष्ट है कि ऐसा नहीं
हो रहा है.
सरकार की कोशिश है कि सड़कों और रेल के आधारभूत ढांचे के निर्माण के
ज़रिए लोगों को कृषि से हटाकर अकुशल और अर्ध-कुशल कामों में लगाया जा सके.
लेकिन क्या इससे इतनी संख्या में नौकरियां पैदा हो सकेंगी कि
लोगों को कृषि क्षेत्र से हटाया जा सके?
इसका उत्तर आसान नहीं है.