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गोरक्षा आंदोलन से बदहाल हुआ चमड़ा उद्योग

चमड़ा उद्योग भारत के शीर्ष दस निर्यातों में एक है. हर साल
12 अरब डॉलर के चमड़े का सामान दूसरे देशों को निर्यात
किया जाता है. लेकिन यह उद्योग पिछले एक साल से संकट में
है.
यूपी लेदर इंजस्ट्रीज़ एसोसिएशन के अध्यक्ष ताज आलम कहते हैं,
''चमड़ा उद्योग कई सालों से आठ से 10 फ़ीसद की दर से आगे बढ़
रहा है था. लेकिन इस साल इसकी निगेटिव ग्रोथ हुई है. यानी 10
से 25 फ़ीसद निगेटिव ग्रोथ.''
पिछले डेढ़ साल से चमड़ा मंडियों में गाय और भैंस की खालों की
सप्लाई लगातार घटती जा रही है.
कानपुर हाइड मर्चेंट एसोसिएशन के जनरल सेक्रेट्री अशरफ़ कमाल
कहते हैं, "चमड़े का कारोबार 40 फ़ीसद से कम बचा है. हमने ऐसी
गिरवाट अपने जीवन में नहीं देखी है. यह कारोबार दिनो-दिन
ख़राब होता जा रहा है."
केंद्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की नरेंद्र मोदी सरकार
के आने के बाद हिंदू संगठनों ने उत्तर भारत में गोरक्षा आंदोलन तेज़
कर दिया है.
दादरी की घटना के बाद इन संगठनों के कार्यकर्ता भैंस ले जाने
वाले ट्रकों पर भी छापे मार रहे हैं.
हाइड मर्चेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हाजी अफ़ज़ाल अहमद का
कहना है कि भाजपा की सरकार बनने के बाद कट्टर हिंदुवादी
संगठनों ने भय और डर का माहौल बना दिया है.
वो कहते हैं, ''चमड़े के व्यापारी अब हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं कि
वो अपना माल यहां लाएं. व्यापारियों को रास्ते में ही रोका
जा रहा है. चमड़ा उतार रहे हैं. उनको मारा जा रहा है. इसमें केंद्र
सरकार भी शामिल है और यूपी की सरकार भी.''
मवेशियों के ट्रकों पर हमले और कई जगहों पर ट्रांसपोर्टरों को
मारने-पीटने की घटनाओं के बाद भैंसों के बूचड़ख़ानों पर बहुत बुरा
असर पड़ा है.
कानपुर बूचड़ख़ाना के अध्यक्ष दिलशाद अहमद क़ुरैशी कहते हैं,
''बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद और गोरक्षा कार्यकर्ताओं ने
अराजकता का माहौल पैदा कर दिया है. जो सही माल आ रहा
रहा है उसे भी वो लूट रहे हैं और व्यापारियों को मार रहे हैं. वो
प्रशासन से मिलकर उल्टे-सीधे मुक़दमें दर्ज करवा रहे हैं.''
गोश्त का कारोबार करे वाले व्यापारी और मज़दूर सभी डरे हुए हैं.
एक ओर गोरक्षा संगठनों के हमले हैं तो दूसरी तरफ़ प्रदूषण पर
नियंत्रण रखने वाले नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने भी इतने
कठिन और जटिल नियम बना दिए हैं कि चमड़े के बहुत से कारख़ाने
बंद हो चुके हैं.
स्थानीय विधायक इरफ़ान सोलंकी कहते हैं, ''हर आदमी अब
कारोबार समेटने लगा है. मेरी अपनी टैनेरी में क़रीब 100 लेबर थे.
आज 20-25 ही बचे हैं. कहां से लाएं चमड़ा. एनजीटी वालों ने भी
इस व्यावसाय को बर्बाद कर दिया है.''
बाज़ार में मवेशियों और चमड़े की संख्या तेज़ी से घटती जा रही है.
ट्रांसपोर्टरों पर हमले के डर से वो अब मवेशियो को ले जाने लाने से
इनकार करने लगे हैं.
उत्तर प्रेदश के उन्नाव ज़िले के एक बड़े उद्योगपति ताज आलम कहते
हैं कि अगर चमड़ा उदयोग या मीट उद्योग पर सीधा असर पड़ा तो
इससे लाखों लोगों की रोजी-रोटी प्रभावित होगी.
वो कहते हैं, ''इसका शिकार केवल चमड़ा उद्योग नहीं है. इससे
केमिकल वाले, मशीन वाले, पैकेजिंग वाले भी जुड़े हुए हैं. बुत सारे
संबंधित उद्योग हैं. वे सब बेरोज़गार हो जाएंगे. इसका बहुत बुरा असर
पड़ेगा.''
प्रदूषण नियंत्रण के जटिल नियम-क़ानूनों और हिंदू संगठनों के
गोरक्षा आंदोलन से मांस और चमड़ा उद्योग इस समय गहरी
अनिश्चितता के दौर से गुज़र रहा है.