दस दिन पहले पेरिस में भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों की
अचानक मुलाक़ात के बाद जितनी तेज़ी से दोनों देश
बातचीत की राह पर आगे बढ़े हैं, उस पर
हैरानी जताई जा रही है.
मीडिया से बातचीत में दक्षिण एशिया
मामलों के जानकार सुशांत सरीन ने कहा कि ‘मीटिंग की
बात समझ में नहीं’ आ रही है.
उनका कहना है कि मोदी सरकार जिस तरह यूटर्न ले रही है
उससे लगता है कि वह सियाचीन समेत अन्य मुद्दों पर और
पीछे हटकर समझौता कर सकती है.
सरीन कहते हैं, ''राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की
मुलाक़ात हुई. इसके बाद जो संयुक्त बयान दिया गया, उसमें चरमपंथ को लेकर बात
कही गई. कोई कह सकता है कि यह बहुत कारगर रहा, लेकिन उससे
क्या निष्कर्ष निकला, इस पर सोचना होगा.''
उनके मुताबिक़, ''बातचीत में कुछ सहमतियां लिखित होती हैं
और कुछ ज़बानी, लेकिन पाकिस्तान जो लिखित में देता है उसका
भी उल्लंघन होता रहा है. ऐसे में सवाल यह है कि रिश्तों में ताज़ा
गर्मजोशी कितना रंग लाएगी.''
उनके मुताबिक़, ''पाकिस्तान की मांगें मानने का मतलब है कि एक ऐसे चेक
पर हस्ताक्षर जिसकी तारीख बहुत बाद की हो, या
फिर ये मानें कि भारत सरकार ने थक-हारकर बातचीत की मेज़
पर जाने का फ़ैसला किया है.”
उनका कहना है कि इस वार्ता से संकेत जाता है कि अगर हिंदुस्तान पर दबाव बनाकर
रखें, तो अभी नहीं तो बाद में ये वापस आ ही जाएंगे.
सरीन कहते हैं, ''पाकिस्तान का लगातार ये कहना कि वह बिना शर्त
बातचीत को तैयार है, लेकिन जैसे ही बहुपक्षीय
बातचीत की मांग होती है और कहा जाता है कि इन
मुद्दों पर बात करेंगे, तो शर्त ख़ुद-ब-ख़ुद लग जाती है.''
वे कहते हैं, ''दूसरी बात, पाकिस्तान बिना शर्त बातचीत के साथ
कश्मीर मुद्दा शामिल करने की मांग करता रहा है. आख़िर वह
इस मुद्दे को वापस लाने में सफल रहा है.''
उनका कहना है कि जब मनमोहन सिंह ने बहुपक्षीय बातचीत
को लेकर सहमति जताई थी तो भाजपा नेताओं ने ही इस पर
बहुत शोर-शराबा मचाया था. अब वही काम ये कर रहे हैं.
''तीसरी बात, जिस तरह मोदी सरकार यू टर्न ले
रही है उससे इसकी भी आशंका है कि
सियाचीन और सर क्रीक जैसे मुद्दों पर भी समझौता
करेंगे और उन शर्तों पर करेंगे, जिन पर शायद भारत आज तक रज़ामंद
नहीं हुआ.''
सरीन के मुताबिक़ हार्ट ऑफ़ एशिया कान्फ़्रेंस का भी कोई
नतीजा नहीं निकलने वाला है क्योंकि अफ़ग़ान तालिबान नेतृत्व को
पाकिस्तान ने पूरी तरह क़ब्ज़ा रखा है और जब तक ज़मीन
पर कुछ न दिखे तब तक किसी बात पर भरोसा करना सही
नहीं माना जा सकता.
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