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लोन ली गई रकम खर्च नहीं कर पाई सरकार, 4 सालों में चुकाने पड़े 400 करोड

भारत को पिछले चार सालों के दौरान 400 करोड़ रुपयों से
ज्यादा की रकम एशियन डिवेलपमेंट बैंक, जापान, जर्मनी और
इंटरनैशनल बैंक फॉर रीकंस्ट्रक्शन ऐंड डिवेलपमेंट (IBRD) को 'खर्च
नहीं हो पाए एक्सटर्नल लोन' के लिए कमिटमेंट चार्ज के तौर पर
चुकानी पड़ी है। इस चूक का सबसे बड़ा फायदा जापान और
एशियन डिवेलपमेंट बैंक को हुआ है।
यह चौंकाने वाला खुलासा महानियंत्रक और लेखापरीक्षक (कैग)
की साल 2014-15 की लेखा रिपोर्ट में हुआ है। कैग ने इस संबन्ध में
अपनी रिपोर्ट में टिप्पणी की है, 'यह चूक अपर्याप्त योजना को
दिखाता है।' सीएजी ने पाया है कि एनडीए सरकार के पिछले एक
साल के कार्यकाल के दौरान 110 करोड़ रुपयों से ज्यादा की रकम
कमिटमेंट चार्ज के तौर पर चुकाई गई।
उल्लेखनीय है कि कमिटमेंट चार्ज ऋणदाता द्वारा उपयोग में नहीं
लाई गई लोन की रकम पर एक शुल्क के तौर पर लगाया जाता है।
कैग ने पाया है कि सरकार को ऋण तो सामान्य ब्याज दरों पर
ही मिला है, लेकिन अगर कमिटमेंट चार्ज को भी इसमें जोड़ दिया
जाए तो ऋण पर ली गई रकम बाजार से भी महंगी पड़ जाती है।
भारत पर 3.66 लाख करोड़ (31 मार्च 2015 तक) का बोझ है,
जिसका 65 फीसदी यानी 2.37 लाख करोड़ रुपये अनयूटिलाइज्ड
कमिटेड लोन है। हाल ही में वित्त मंत्रालय द्वारा किए गए
अध्ययन में यह निकलकर सामने आया था कि साल 1991 से 2009 के
बीच सरकार को 1400 करोड़ रुपये तक कमिटमेंट चार्ज के तौर पर
चुकाने पड़े हैं।

सीएजी ने सरकार के उन विभागों का भी जिक्र किया है जहां
लोन पर ली गई ये रकम खर्च नहीं हो सकी। इनमें सबसे पहले नंबर
आता है शहरी विकास मंत्रालय जिसके पास सबसे बड़ी अनयूज्ड
रकम (33,700 करोड़ रुपये) है। इसके बाद ऐटॉमिक एनर्जी (31,300
करोड़ रुपये), सड़क परिवहन (29,500 करोड़ रुपये), पावर (28,500
करोड़ रुपये), रेलवे (25,100 करोड़ रुपये) और वाटर सप्लाइ ऐंड
सैनिटेशन (14,900 करोड़ रुपये) शामिल हैं।
कैग ने लोन फंड्स के इस्तेमाल को लेकर मोदी सरकार की अक्षमता
पर भी सवाल खड़ा किया है। कैग के मुताबिक साल 2011-12 में
खर्च नहीं हो पाई रकम 1,76,090 करोड़ रुपये थी, जो कि साल
2013-14 में बढ़कर 2,36,882 करोड़ और अगले साल 2,37,012 करोड़
रुपये तक पहुंच गई। ये आंकड़े दिखाते हैं कि बाहरी आर्थिक मदद के
इस्तेमाल में नरेंद्र मोदी सरकार का प्रदर्शन यूपीए सरकार से बहुत
अच्छा नहीं है।
इसके अलावा कैग ने सरकार के उस फैसले पर भी सवाल उठाया है
जिसमें कमिटमेंट चार्ज के तौर पर चुकाई गई रकम को 'वायदा
प्रभार' (interest obligation) के रूप में दिखाया है। कैग का कहना है
कि यह शीर्षक खर्च को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित नहीं करता है और
भ्रामक है।