Loading...

बिहार चुनाव के बाद विपक्षी एकजुटता से संसद में केंद्र के छूटेंगे पसीने

 बिहार चुनाव के बाद संसद में केंद्र सरकार पर विपक्ष का शिकंजा अब और कस जाएगा। दिल्ली चुनाव के बाद ही विपक्ष ने केंद्र सरकार की संसद से लेकर सड़क तक घेराबंदी की थी, जिससे संसद के लगातार दो सत्र गतिरोध की भेंट चढ़ गए थे। बिहार चुनाव में करारी शिकस्त के बाद संसद में आक्रामक विपक्ष के आगे केंद्र सरकार की मुश्किलें और बढ़नी तय है। इससे सरकार की आर्थिक सुधारों को झटका लग सकता है।

राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार को उखाड़ फेकेंगे। जाहिर है इसी माह शुरू हो रहे संसद सत्र में मोदी सरकार को विपक्ष के अब ऐसे ही धारदार तेवरों से जूझना होगा।

बिहार चुनाव के दौरान असहिष्णुता का मुद्दा बेहद मुखर हो गया था, जिसे लेकर विपक्षी दलों के साथ अन्य संगठनों ने सरकार पर हमला बोला था। असहिष्णुता के मुद्दे पर संसद के शीत सत्र में केंद्र सरकार और विपक्ष के बीच एक बड़े गतिरोध का मंच पहले से ही तैयार हो गया है। चुनाव नतीजों से उत्साहित एकजुट विपक्ष दल संसद के दोनों सदनों में असहिष्णुता के मद्दे पर निंदा प्रस्ताव पारित कराकर सरकार पर दबाव बनाना चाहेगा। इसमें संघ समेत उसके अन्य संगठनों की गतिविधियों पर पाबंदी लगाने की मांग भी संभव है।

आम लोगों को प्रभावित कर रही दालों के ऊंची कीमत का मसला सरकार को संसद में बहुत तंग करेगा। इसे विपक्ष जोर-शोर से उठाएगा। सभी विपक्षी पार्टियां दालों की बढ़ी कीमत को सरकार की विफलता के रूप में देख रहे हैं। सूखा के चलते किसानों की बिगड़ती हालत और आम उपभोक्ताओं की मुश्किलों को सुलझाना सरकार की प्राथमिकताओं में नहीं है। केंद्र सरकार ऐसे आरोपों से चौतरफा घिरी है, जिसका जवाब देना आसान नहीं होगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्षी नेताओं के निशाने पर होंगे, उनके विदेश दौरों को लेकर लगातार सवाल खड़े किए जाते रहे हैं। चुनाव नतीजे पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मोदी को विदेश दौरा छोड़ लोगों की सुध लेने की सलाह दे डाली है। संसद में भी विपक्षी नेता सरकार पर हमलावर होंगे।

आर्थिक सुधारों में सरकार के अहम विधेयक जीएसटी, भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन, रीयल इस्टेट रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट और निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एंड आर्बिट्रेशन विधेयक रुके पड़े हैं। अगर इन प्रमुख विधेयकों को पारित नहीं कराया जा सका तो आर्थिक सुधारों की गति धीमी होना तय है।