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मुंबईः 26/11 हमले की सातवीं बरसी आज, सीएम फणनवीस ने दी श्रद्धांजलि

 आज मुंबई हमले की सातवीं बरसी है। इस मौके पर महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फणनवीस ने नरीमन प्वाइंट पर शहीदों को श्रद्धांजलि दी।
गौरतलब है कि 26 नवंबर 2008 को मुंबई में आतंकियों ने आतंक का नंगा नाच खेला। आतंकियों ने दो पांच सितारा होटलों समेत सीएसटी और एक यहूदी केंद्र को निशाना बनाया था।शुरुआत में तो किसी को यकीन नहीं हुआ कि ये इतना बड़ा हमला हो सकता है। 26 नवंबर की रात एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे समेत पुलिस के कई आलाधिकारी आतंकी हमले में शहीद हो गए थे। शहर के लियोपोल्ड कैफे से शुरु हुआ आतंक का खेल ताज होटल में जाकर खत्म हुआ था।पाक प्रायोजित आतंकी हमले में 160 से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी।

मुंबई हमले की पीड़िता बनना चाहती है पुलिस ऑफिसर

उम्र के 17वें वर्ष को पूरा करने की दहलीज पर खड़ी देविका रोतवान अब हिम्मत से खड़ी है। देविका दसवीं की परीक्षा की तैयारी में जुटी है। वह 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर हुए हमले में घायल हो गई थी। वह अब आइपीएस अफसर बनना चाहती है। हमले के बाद टुकड़ों में बिखर गई उसके परिवार की जिंदगी भी इन सात सालों में पटरी पर आ गई है।

यूं तो देविका का जन्मदिन 27 दिसंबर है, लेकिन अब 26 नवंबर भी उसके लिए जन्मदिन से कम नहीं। सात वर्षो से उसके परिचित उसे इस तारीख पर मुबारकबाद देना नहीं भूलते। लेकिन मौत से जंग जीत चुकी इस किशोरी को 'कसाब गर्ल' कहने वालों की भी कमी नहीं है। छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (सीएसटी) रेलवे स्टेशन पर आतंकवादियों की ओर से की गई फायरिंग में उसके पैर बुरी तरह जख्मी हो गए थे।

हमले की रात वह पुणे जाने के लिए पिता नटवरलाल रोतवान और भाई के साथ सीएसटी स्टेशन पहुंची थी। उसके बड़े भाई पुणे में काम करते हैं और वहीं रहते हैं। मुंबई में उसका परिवार ब्रांदा (पूर्व) में एक छोटी-सी खोली में रहता है। अचानक गोलीबारी शुरू हुई और हर ओर अफरा-तफरी मच गई। पिता बचने के लिए सुरक्षित कोने की तरफ दौड़ पड़े। इससे पहले कि लोग समझ पाते कि हुआ क्या है, देविका को गोली लग चुकी थी। वह खून से लथपथ थी।

नटवरलाल ने बताया, 'बच्ची के साथ मैं नजदीक के सेंट जार्ज अस्पताल की तरफ दौड़ पड़ा। लेकिन उसके शरीर में प्रवेश कर गई गोली अगले दिन निकाली जा सकी। उसके बाद हम उसे जेजे अस्पताल ले गए।' छह ऑपरेशन और चार वर्ष बाद देविका को बैसाखियों से मुक्ति मिली।

आतंकवादी हमले में बची इस लड़की को स्कूली शिक्षा शुरू करने में भारी मशक्कत करनी पड़ी। दो स्कूलों ने उसे इसलिए दाखिला देने से मना कर दिया, क्योंकि वह आतंकी हमलों की पीडि़ता थी। दो वर्ष बाद पास के एक स्कूल में दाखिला मिला। आज देविका बांद्रा के आइईएस न्यू इंगलिश स्कूल की छात्रा है। अब उसे बैसाखियों से तो मुक्ति मिल चुकी है, लेकिन मौसम जब भी सर्द होता है तो चलने में तकलीफ होती है। दर्द के रूप में उस हादसे की याद आज भी उसके साथ है।