मुंबई के एक स्पेशल कोर्ट में चल रही 26/11 मुंबई आतंकी हमले के
आतंकी डेविड कोलमैन हेडली की गवाही में सब कुछ सच नहीं है।
हेडली ने कई बातें ऐसी कही हैं, जो उसके अमेरिका में सुरक्षा
एजेंसियों को दिए गए बयान से काफी अलग हैं।
सबसे पहले, उसने गवाही में कहा है कि उसने रेकी के दौरान मुंबई के
सीएसटी स्टेशन को आतंकियों के भागने के रास्ते के तौर पर
चिह्नित किया था। जबकि भारत की सुरक्षा एजेंसियों की
रिपोर्ट बताती है कि आतंकी सूइसाइड मिशन पर थे और भागने
का उनका कोई भी प्लान नहीं था। इससे भी ज्यादा हैरान करने
वाली बात है कि उसकी यह गवाही मार्च, 2010 में अमेरिका में
दिए खुद उसके ही बयान को ही झुठला रही है।
अपनी सजा कम करवाने के लिए अमेरिकी एजेंसियों के साथ किए
अग्रीमेंट में हेडली ने कहा था कि सीएसटी आतंकी हमले का 'एक
निशाना' था, जिसकी योजना '2005 के आखिर' में शुरू हो गई थी
न कि 2007 में जैसा कि उनसे स्पेशल कोर्ट के सामने गवाही में कहा
है। हेडली ने अग्रीमेंट के तहत दिए गए बयान में कहा था कि 2005 के
आखिर में उसकी मुलाकात लश्कर-ए-तैयबा के तीन लोगों से हुई
थी। उसके बाद उसने 2006 में मुंबई में तमाम जगहों की रेकी की थी।
अग्रीमेंट में कहीं भी हेडली ने यह नहीं कहा था कि आतंकी
सीएसटी से भागने वाले थे। उसने बताया था कि आतंकी हमला
ताज महल होटल तक ही सीमित नहीं था, आतंकियों के निशाने
पर ओबेरॉय होटल, छाबड़ हाउस, सीएसटी, लियोपोल्ड कैफे और
आतंकियों के रास्ते में पड़ने वाले कुछ और निशाने भी थे।
इस बयान से साफ जाहिर था कि आतंकियों का भागने का कोई
इरादा नहीं था। अग्रीमेंट डॉक्युमेंट से भी यह भी साफ जाहिर है
कि हेडली कई बार अपने लश्कर-ए-तैयबा के हैंडलर से मिला था।
हैंडलर ने हेडली को बताया था कि आतंकी समुद्र के रास्ते मुंबई में
दाखिल होंगे और आखिरी सांस तक लड़ेंगे।
इसके अलावा, गवाही के दौरान जब हेडली से पूछा गया कि उसे
लश्कर और आईएसआई से पैसे मिले थे और उसने यूएई की ट्रिप भी की
थी तो उसने गुस्से से उसका जवाब दिया। उसने कहा, 'हां, अमेरिका
में मेरे खुद के बिजनस से मेरे पास काफी पैसा था इसलिए मैं उसे
इन्वेस्ट करना चाहता था।' हालांकि, अमेरिका के दस्तावेज से
पता चलता है कि उसे लश्कर की मिशन को अंजाम देने के लिए 30
हजार डॉलर दिए गए थे।