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नरेंद्र मोदी और नवाज शरीफ की मीटिंग से चर्चा में क्यों आए सज्जन जिंदल?

क्रिसमस के दिन दो ट्वीट्स ने राष्ट्रीय राजनीति को हिलाकर
रख दिया। पहला ट्वीट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का था। रूस से
अफगानिस्तान होकर वतन वापस लौटने के बीच उन्होंने लाहौर
रुकने का फैसला करके कई लोगों को चौंका दिया। मोदी ने अपने
पाकिस्तानी समकक्ष नवाज शरीफ को बर्थडे विश भी किया।
ठीक इसके घंटे भर बाद स्टील और एनर्जी सेक्टर के बड़े उद्योगपति
और JSW ग्रुप के बॉस सज्जन जिंदल ने ट्विटर पर लिखा,
'प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को उनके जन्मदिन पर बधाई देने के लिए
लाहौर में हूं।'
पहली नजर में सज्जन जिंदल का ट्वीट सीधा सादा सा था लेकिन
इसमें गहरे निहितार्थ छुपे हुए थे। सज्जन जिंदल का यह ट्वीट
जानीमानी पत्रकार बरखा दत्त की किताब के पब्लिश होने के
बाद आया है। बरखा ने अपनी किताब में उस अरबपति उद्योगपति
के बारे में खुलासा किया है जिन्होंने पिछले साल काठमांडू में
SAARC मीटिंग के दौरान दोनों नेताओं की होटल के एक कमरे में
घंटे भर की सीक्रिट मीटिंग कराई थी।
इकॉनमिक टाइम्स ने पिछले साल अपनी रिपोर्ट में लिखा भी था
कि मोदी के शपथग्रहण समारोह में आए प्रधानमंत्री नवाज शरीफ
जिंदल के घर चाय पीने के लिए गए थे। क्या सज्जन जिंदल सत्ता
प्रतिष्ठान के लिए नए आर. के. मिश्र हैं? कहा जाता है कि
रिलायंस के ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के फाउंडर चेयरमैन रहे ऋृषि
कुमार मिश्र की मदद तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार
ने कारगिल युद्ध के दौरान भारत-पाकिस्तान की पिछले दरवाजे
से बातचीत के लिए ली थी।
इसलिए एक दशक से भी ज्यादा समय के बाद सज्जन जिंदल की
सक्रियता को भारत-पाकिस्तान बातचीत के नए 'सूत्रधार' के
तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि सज्जन जिंदल को उनके
मोबाइल पर संपर्क करने की तमाम कोशिशें नाकाम रहीं। मालूम
पड़ता है कि जिंदल पर राजनीतिक छींटाकशी शुरू हो गई है।
कांग्रेस के प्रवक्ता आनंद शर्मा ने मोदी के लाहौर रुकने के हैरान
कर देने वाले फैसले पर कहा, "प्रधानमंत्री ने लाहौर की इस
मुलाकात के लिए 'निहित स्वार्थ वाले किसी के कारोबारी
हितों' की सेवा ली है।"
हालांकि स्वतंत्र विश्लेषकों की राय इससे अलग है। वे कहते हैं कि
इस तरह की परिस्थितियों में किसी उद्योगपति की मदद लेने में
कुछ भी नया नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया
सलाहकार संजय बारु कहते हैं, 'एक बिजनसमैन के तौर पर नवाज
शरीफ के खुद कई कारोबारियों से अच्छे रिश्ते हैं। ऐसा पहली बार
नहीं कि एक प्रधानमंत्री अपने समकक्ष को संदेश देने के लिए किसी
बिजनसमैन की सर्विस ले रहा है। इंदिरा गांधी ने ऐसा किया था।
नरसिंह राव ऐसा कर चुके हैं यहां तक कि अटल बिहारी वाजपेयी
भी।'
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भी इसके उदारहरण मिलते हैं। रूस और
अमेरिका के बीच जारी तनातनी के दौरान उद्योग जगत के लोगों
ने महत्वपूर्ण रोल प्ले किया था। ठीक इसी तरह माओ त्सेतुंग ने
अमेरिका से कूटनयिक संबंध बनाने से पहले अमेरिकी कारोबारियों
के साथ रिश्ते बनाए थे। जिंदल और शरीफ परिवार के बीच
पीढियों से निजी दोस्ती रही है। दोनों परिवारों के
कारोबारी हित स्टील बिजनस में हैं।