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NDA को फायदा पहुंचाने में पूरी तरह नाकाम रहे पासवान और मांझी

रामविलास पासवान, जीतनराम मांझी बिहार विधानसभा चुनाव में राजग को फायदा पहुंचाने में नाकाम रहे। भाजपा दोनों दलित नेताओं पर अनुसूचित जातियों के करीब 16 प्रतिशत वोट दिलाने के लिए निर्भर थी।

राजद, जदयू और कांग्रेस के महागठबंधन को राजग की तुलना में अनुसूचित जाति समुदायों के मतदाताओं का ज्यादा समर्थन मिला जबकि राज्य में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 26 रैलियों के दौरान पासवान और मांझी हमेशा उनके साथ रहते थे। चुनाव परिणाम के विश्लेषण से पता चलता है कि जदयू-राजद-कांग्रेस के शिविर से नौ पासवान उम्मीदवार जीते जबकि राजग की तरफ से ऐसे उम्मीदवारों की संख्या दो थी। उन दोनों में से भी एक भाजपा जबकि दूसरा राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) का था और रामविलास पासवान की लोजपा ऐसी कोई भी सीट जीतने में नाकाम रही।

उसी तरह भाजपा महादलितों के वोट के लिए जीतनराम मांझी पर निर्भर थी, लेकिन महागठबंधन के ऐसे 15 उम्मीदवारों को जीत मिली जबकि मांझी अपनी हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा (हम) की तरफ से अकेले विजेता रहे। महादलित समुदाय से भाजपा के तीन उम्मीदवारों को जीत मिली। राजद ने दस महादलितों को टिकट दिया था जिनमें से नौ विजयी रहे। जदयू ने छह महादलितों को टिकट दिया था और उनमें से पांच जीते जबकि कांग्रेस ने जिन तीन उम्मीदवारों को उतारा था उनमें से एक को जीत मिली। राजग शिविर में भाजपा ने 11 महादलित उम्मीदवार उतारे थे जिनमें से तीन को जीत मिली। लोजपा और आरएलएसपी ने क्रमश: तीन और एक उम्मीदवार उतारे थे जिनमें से सब को हार का सामना करना पड़ा।

बिहार विधानसभा की 243 सीटों में से 38 अनुसूचित जाति और दो अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की पार्टी ने कुल 41 उम्मीदवार खड़े किए थे, जिनमें से मात्र दो को जीत मिली और दोनों ही अति पिछड़ा वर्ग से हैं। केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी को दो सीटें मिलीं जिनमें से एक पर कुशवाहा जाति और दूसरे पर पासवान जाति का उम्मीदवार विजयी रहा। इसके बाबत पूछे जाने पर मांझी ने कहा कि उनकी मांझी जाति के लोगों ने आक्रामक तरीके से राजग के लिए मतदान किया। उन्होंने दावा किया कि दलितों और महादलितों के कुल 16 प्रतिशत वोटों में पांच, पांच और चार प्रतिशत वोट के साथ पासवान, रविदास और मांझी तीन बड़ी जातियां हैं। मांझी जाति के मतदाताओं ने आक्रामक तरीके से राजग के लिए वोट किया। मांझी के दावे पर विश्वास करना मुश्किल है क्योंकि वे खुद अपने निवर्तमान मखदूमपुर सीट (आरक्षित) पर हार गए जबकि उनके बेटे संतोष कुमार सुमन को औरंगाबाद के कुटुंब सीट से हार का सामना करना पड़ा।

नतीजों पर ध्यान देने से पता चलता है कि लालू प्रसाद की पार्टी राजद की तरफ से यादव और मुस्लिम बड़े विजेता रहे। लालू ने अपनी खुद की यादव जाति के 49 उम्मीदवार उतारे थे जिनमें से 42 को जीत मिली। इसी तरह राजद के 16 मुस्लिम उम्मीदवारों में 12 को जीत मिली जिससे पता चलता है कि मुस्लिम और यादव समुदाय अब भी लालू का समर्थन करते हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जदयू की तरफ से उनकी खुद की कुर्मी जाति के 13 और कुशवाहा एवं यादव जाति के 11-11 उम्मीदवार विजयी रहे। जदयू की तरफ से कुर्मी और कुशवाह जाति के विजयी उम्मीदवारों की बहुतायत से साबित होता है कि ‘लव-कुश’ (कुर्मी और कुशवाहा) पर नीतीश की पकड़ अब भी मजबूत है। कांग्रेस के 27 विजेता उम्मीदवारों में 12 सवर्ण हैं। कांग्रेस की तरफ से चार ब्राह्मण, तीन-तीन राजपूत एवं भूमिहार और दो कायस्थ जाति के उम्मीदवार विजयी रहे। भाजपा ने इन चारों सवर्ण जातियों के सबसे अधिक उम्मीदवार उतारे थे जिनमें से 22 विजयी रहे। कुल वोट प्रतिशत में इन जातियों की हिस्सेदारी 15 प्रतिशत है।

वहीं, मतदाताओं की आबादी में 30 प्रतिशत हिस्सा रखने वाले अति पिछड़ा वर्ग के 12 उम्मीदवार महागठबंधन की तरफ से विजयी रहे जबकि राजग के ऐसे सात उम्मीदवारों को जीत मिली जिनसें से सभी भाजपा के हैं।