चीन दुनिया में सबसे अधिक नमक बनाने वाला देश है। लेकिन उसके नमक में प्लास्टिक मिला है। यह लोगों को किस तरह बीमार कर रहा होगा, इसका सिर्फ अंदाजा ही सिहरा देने वाला है।
शंघाई के ईस्ट चाइना नॉर्मल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस बारे में अध्ययन किया है। उन्होंने चीन में बने समुद्री नमक के साथ-साथ सेंधा नमक और झरने व कुएं के पानी से बने नमक की भी जांच की। इसके लिए उन्होंने चीनी सुपरमार्केट से 15 ब्रांड के नमक खरीदे।
सबमें प्लास्टिक के नैनो पार्टिकल
अमेरिकन केमेस्ट्री सोसाइटी के जर्नल एनवायरमेंट साइंस एंड टेक्नोलॉजी में छपे उनके पेपर के मुताबिक, इन सबमें प्लास्टिक के नैनो पार्टिकल, मतलब बहुत ही छोटे टुकड़े मिले हैं। ये पांच मिलीमीटर या उससे भी छोटे हैं। समुद्री नमक में प्रति किलोग्राम 550 से 681 टुकड़े पाए गए। सेंधा नमक और कुएं के पानी से बनने वाले नमक में प्रति किलोग्राम 204 टुकड़े पाए गए। इसकी वजह यह भी मानी गई है कि तीनों के उत्पादन की प्रक्रिया एक ही है। इसी आधार पर शोधकर्ताओं का अनुमान है कि इनका उपयोग करने वाले लोग एक साल में करीब एक हजार टुकड़े तक खा रहे होंगे।
क्यों है ऐसा
इसकी वजह हम सभी लोग हैं। हम प्लास्टिक का सही ढंग से निबटारा नहीं कर रहे और अंतत: किसी-न-किसी रूप में यह समुद्र तक पहुंच रहा है और इस रूप में हमारे पास लौट रहा है। माना जाता है कि समुद्र में सालाना पचास लाख टन प्लास्टिक चला जाता है। समुद्री जीव-जंतु इसे खाने लगे हैं। हाल के दिनों में कछुओं, समुद्री पक्षियों और व्हेल के पेट में भी प्लास्टिक मिले हैं। समुद्र के अंदर पाए जाने वाले परजीवी पौधों में भी प्लास्टिक की मात्र पाई गई है। इस तरह प्लास्टिक समुद्र में जाने के लिए प्लास्टिक के बोतल, शॉपिंग बैग और औद्योगिक कचरे के साथ-साथ हमारे दैनिक उपयोग वाली सौंदर्य और प्रसाधन सामग्री है। फेस स्क्रब, शावर जेल और टूथपेस्ट में प्लास्टिक के सूक्ष्म टुकड़ों का उपयोग सबसे अधिक होता है। इनका उपयोग करने के बाद अपना चेहरा-मुंह धोकर हम उसे नालियों में बहा देते हैं। ये इतने छोटे होते हैं कि जलशोधन संयंत्र भी इसे नहीं रोक पाते और वे आखिरकार समुद्र में जाकर मिल जाते हैं। हाल के कुछ अध्ययन में तो दुनिया के कई देशों में समुद्र तट के रेत में भी प्लास्टिक के इस तरह के टुकड़े मिले हैं।