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टीपू सुल्तान साम्प्रदायिक थे या कहानी गढ़ी गयी है।

ब्रितानी सेना से लोहा लेने वाले मैसूर के शासक टीपू सुल्तान के बारे में फिर एक विवाद गर्म हो रहा है. क्या टीपू सांप्रदायिक थे?
कर्नाटक सरकार मंगलवार को टीपू जयंती मना रही है जबकि राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ और उससे जुड़े संगठन उसका विरोध कर रहे हैं. आरएसएस और उससे जुड़ी संस्थाएं बीजेपी, विश्व हिंदू परिषद, बंजरंग दल, हिंदू जागरण वेदिके का कहना है- “टीपू सुल्तान ने तटीय
दक्षिण कन्नड़ ज़िले में मंदिरों और चर्चों को ध्वस्त किया था और कई लोगों को धर्मातरण करने पर मजबूर किया था.” कर्नाटक, तमिलनाडू और आंध्र प्रदेश में आरएसएस के संयोजक वी नागराज इस विचार से सहमत हैं. उन्होंने बीबीसी हिंदी को बताया, “टीपू के समय जो हुआ वो बहुत तारीफ़ के क़ाबिल नहीं है. यही वजह है कि अधिकांश लोग सरकार के टीपू जयंती मनाए जाने का विरोध कर रहे हैं." इस बार हिंदूत्ववादी संगठनों के विरोध का मुख्य केंद्र कोडगू और
दक्षिण कन्नड़ ज़िले में रहा है. दक्षिण कन्नड़ ज़िले के बारे में कहा जाता है कि 'वहां टीपू सुल्तान की सेना ने ज़ूल्म किए, मंदिरो को लूटा और महिलाओं
का बलात्कार किया.' लेकिन लेखकों और इतिहासकारों का नज़रिया इससे बिल्कुल उलट है. टीपू से जुड़े दस्तावेज़ों की छानबीन करने वाले इतिहासकार
टीसी गौड़ा कहते हैं, “ये कहानी गढ़ी गई है.”
टीपू ऐसे भारतीय शासक थे जिनकी मौत मैदान ए जंग में अंग्रेज़ो के ख़िलाफ़ लड़ते-लड़ते हुई थी.
गौड़ा कहते हैं, “इसके उलट टीपू ने श्रिंगेरी, मेल्कोटे, नांजनगुंड, सिरीरंगापटनम, कोलूर, मोकंबिका के मंदिरों को ज़ेवरात दिए और सुरक्षा मुहैया करवाई थी.”
वो कहते हैं, “ये सभी सरकारी दस्तावेज़ों में मौजूद हैं. कोडगू पर बाद में किसी दूसरे राजा ने भी शासन किया जिसके शासनकाल के दौरान महिलाओं का बलात्कार हुआ. ये लोग उन सबके बारे में बात क्यों नहीं कर रहे हैं?” आरएसएस के नागराज कहते हैं, "टीपू ने श्रिंगेरी मठ को राजनीतिक वजहों से संरक्षण दिया. वरना, वो कोडगू में मंदिरों को क्यों तहस नहस करता. उसका लक्ष्य इस्लाम फैलाना था. ये साफ़ है. इतिहासकारों ने ये बात साबित कर दी है." नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ़ एडवांस्ड स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर नरेंद्र पानी टीपू पर एक अगल नज़रिया रखते हैं. पानी बैंगलुरू पर कई किताबें
लिख चुके हैं. वो कहते हैं, “अठारहवीं सदी में हर किसी ने लूटपाट और बलात्कार किया. 1791 में हुई बैगलुरू की तीसरी लड़ाई में तीन हज़ार लोग मारे गए थे. बहुत बड़े पैमाने पर बलात्कार और लूटपाट हुआ. लड़ाई
को लेकर ब्रितानियों ने जो कहा है उसमें उसका ज़िक्र है.” प्रोफ़ेसर पानी कहते हैं कि 'हमारी सोच 21वीं सदी के अनुसार ढलनी चाहिए और हमें सभी बलात्कारों की निंदा करनी चाहिए चाहे वो मराठा, ब्रितानी या फिर दूसरों के हाथों हुआ हो.' वो कहते हैं, “टीपू के सबसे बड़े दुश्मनों में से एक हैदराबाद के निज़ाम
थे. इस मामले को एक सांप्रदायिक रंग देना ग़लत है. सच तो ये है कि श्रिंगेरी मठ में लूटपाट मराठों ने की थी, टीपू ने तो उसकी हिफ़ाज़त की थी.”
गौड़ा कहते हैं, “टीपू ने सज़ा के तौर पर उन लोगों को धर्मातरण के लिए मजबूर किया जिन्होंने ब्रितानी सेना का साथ दिया.” वो आगे हिंदुत्ववादी संगठनों पर पलटवार करते हैं, “अगर टीपू ने ऐसा
किया होता तो उन सारे लोगों को उसका राज छोड़ने पर मजबूर होना पड़ता. उन्हें क्या अधिकार है कि वो टीपू पर सवाल उठाएं, जबकि हिंदूत्ववादी ताक़ते मैंगलोर और ओडिशा में चर्चों पर हमले
कर रही हैं. “उधर प्रोफ़ेसर पानी का विचार है कि टीपू के यहां कृषि व्यवस्था मज़बूत थी जिसकी वजह से लोगों से उनका सीधा संबंध था. वो कहते हैं, "टीपू कोशिश करते कि ऐसी कृषि व्यवस्था हर जगह
स्थापित करें, चाहे वो हिंदूओं, मुसलमानों या ईसाइयों के बीच हो. जहां भी उन्हें स्थानीय ज़मींदारों की ओर से किसी तरह की अड़चन नज़र आई, वहां लड़ाई हुई और उस तरह की लूटपाट हुई जैसी की अठारवीं सदी में हुआ करती थी. "कृषि व्यवस्था इस क़दर बेहतर थी कि टीपू सुल्तान के मारे जाने के बाद ब्रितानियों ने भी उसको अपनाया. प्रोफ़ेसर पानी कहते हैं कि कुछ लोग ब्रितानियों के ख़िलाफ़ टीपू की लड़ाई और उस समय के शासकों की आपसी लड़ाइयों के बीच, आपसी जंगों पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं.
ग़ौरतलब है कि साल 2014 में टीपू सुल्तान की एक अंगूठी की नीलामी हुई थी, इस अंगूठी पर 'राम' लिखा हुआ है.