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गुलबर्ग कांड: नेता छूटे, कार्यकर्ताओं को सज़ा


14 साल के बाद आज गलबर्ग सोसायटी के गुनहगारों को सजा सुनायी गयी। लोगों से खचाखच भरी स्पेशल एसआइटी अदालत में जज पी बी देसाई पर पीड़ित और दोषी पक्ष की निगाहें टिकी हुई थी। जज साहब ने 11 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। वहीं 12 दोषियों को सात साल की सजा और एक दोषी को 10 साल की सजा सुनायी।
जाकिया जाफरी ने क्या कहा ?
अदालत के फैसले पर याची जाकिया जाफरी ने कहा कि वो अदालत के फैसले से खुश नहीं है। वकील से सलाह के बाद ऊपरी अदालत में अपील करुंगी। गुलबर्ग सोसायटी में बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे। लेकिन 11 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी है। जाकिया जाफरी ने कहा कि अभी लड़ाई बाकी है। इसे मैं न्याय नहीं कह सकती हूं। गुनाह के लिए जिम्मेदार लोग बेहद ही हिंसक थे। ये समझ के बाहर है कि अदालत ने एक तरह के अपराध के मामले में गुनहगारों को अलग-अलग सजा दी है।
तीस्ता सीतलवाड़ का बयान
सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने कहा कि अदालत के फैसले से खुशी है। लेकिन कम सजा के ऐलान से निराशा भी हुई है। उन्होंने कहा कि वो बदले के फैसले में विश्वास नहीं करती है। सुधारात्मक प्रयासों से ही अपराधियों की मनोदशा को बदला जा सकता है।
सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने कहा कि वो मौत की सजा में विश्वास नहीं करती हैं। उन्होंने अदालत के फैसले पर कहा कि वो ये नहीं कहना चाहती हैं कि दोषियों को मौत की सजा मिलनी चाहिए।
दोषियों के रिश्तेदारों का बयान
वहीं सजायाफ्ता दोषियों में से एक की बहन ने कहा कि उसका भाई निर्दोष है। अदालत के फैसले में खोट है। वो लोग स्पेशसल एसआइटी कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे।
अभियोजन पक्ष ने इससे पहले विशेष जज पीबी देसाई को सभी दोषियों द्वारा जेल में बिताई गई अवधि को लेकर तैयार सूची सौंपी। इसके बाद कोर्ट ने सजा के एलान की तिथि मुकर्रर की। 11 आरोपियों को हत्या के मामले में दोषी करार दिया था। विश्व हिंदू परिषद के नेता अतुल वैद्य समेत 13 अन्य को अपेक्षाकृत कम गंभीर मामलों में दोषी ठहराया गया था। कोर्ट ने 36 अन्य को बरी कर दिया था।
अभियोजन पक्ष ने सभी दोषियों को फांसी की सजा देने की मांग की है। वहीं, बचाव पक्ष ने दोषियों की सामाजिक, आर्थिक, आपराधिक रिकॉर्ड और सुधार की गुंजाइश को ध्यान में रखते हुए सजा देने की बात कही है। गुजरात दंगे से जुड़े नौ मामलों की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रही है। गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार का मामला भी इनमें से एक है।

जानिए, गुलबर्ग सोसायटी नरसंहार और अदालती कार्यवाही में कब क्या हुआ?
2002 के गोधरा कांड के बाद गुजरात के चर्चित गुलबर्ग सोसायटी हत्याकांड मामले में एक स्पेशल एसआईटी कोर्ट ने सभी 24 दोषियों के खिलाफ सजा का एलान कर दिया है। दोषियों को आजीवन कारावास से लेकर 10 साल और सात साल की सजा सुनाई गयी है। 2 जून को विशेष अदालत के न्यायाधीश पीबी देसाई ने फैसला सुनाते हुए 24 आरोपियों को दोषी करार दिया जबकि 36 आरोपियों को बरी कर दिया गया है।

28 फरवरी, 2002- गोधराकांड के एक दिन बाद, यानी 28 फरवरी को 29 बंगलों और 10 फ्लैट वाली गुलबर्ग सोसायटी जहां पर अधिकांश मुस्लिम परिवार रहते थे, वहां पर उत्तेजित भीड़ ने हमला किया गया। शाम होते- होते यहां कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। ज्यादातर लोगों को जिंदा जला दिया। 39 लोगों के शव बरामद हुए जबकि कई गायब भी हुए जिन्हें बाद में मृत मान लिया गया। कुल मौतों का आंकडा 69 था और मृतकों में कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी भी शामिल थे।

8 जून, 2006 - एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी ने पुलिस में एक शिकायत दर्ज की जिसमें इस हत्याकांड के लिए मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई मंत्रियों और 62 अन्य लोंगो को ज़िम्मेदार ठहराया गया लेकिन पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने से मना कर दिया।

अक्टूबर, 2007 - तहलका पत्रिका ने एक एक स्टिंग ऑपरेशन किया जिसमें विश्व हिंदू परिषद और बंजरग दल के 14 लोगों सहित तत्कालीन भाजपा विधायक हर्ष भट्ट, जो उस समय बजरंग दल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे वो हत्याओं को अंजाम देने की बात कर रहे थे।

3 नवंबर, 2007 - जकिया जाफरी ने इस मामले को लेकर गुजरात हाईकोर्ट से संपर्क किया लेकिन हाईकोर्ट ने शिकायत लेने से मना कर दिया और कहा कि कि पहले वो मजिस्ट्रेट कोर्ट में मामले को ले जाए।

26 मार्च, 2008 - सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों के 10 बड़े मामलों की जांच के लिए नरेंद्र मोदी सरकार को आदेश दिया जिनमें गुलबर्ग का मामला भी था। कोर्ट ने पूर्व सीबीआई निदेशक आर के राघवन की अध्यक्षता में जांच के लिए एक एसआईटी बनाई।
सितंबर 2009 - ट्रायल कोर्ट में गुलबर्ग हत्याकांड की सुनवाई (ट्रायल) शुरू हुई।
27 मार्च 2010 - नरेंद्र मोदी को एसआईटी ने ज़किया की फरियाद के संदर्भ में समन किया और गुलबर्ग सोसायटी सहित एहसान जाफरी की हत्या के मामले में उन पर लगे आरोपों के मामले में पूछताछ की।
मार्च 2010 - विशेष लोक अभियोजक आर के शाह निचली अदालत के न्यायाधीश तथा एसआईटी पर यह आरोप लगाते हुए ईस्तीफा दे दिया कि वे आरोपी पर नरमी बरत रहे हैं जिसके बाद इस केस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा थी।
दिसंबर 2010- जकिया जाफरी सहित अन्य पीड़ित लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक अर्जी दाखिल करते हुए कोर्ट से आग्रह किया कि एसआईटी 30 दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट पेश करे।
मार्च 2011- सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी को न्यायविद् राजू रामचंद्रन द्वारा व्यक्त की गई शंकाओं पर ध्यान देने को कहा।
18 जून, 2011- रामचंद्रन ने अहमदाबाद का दौरा किया और गवाहों तथा उन अन्य लोगों से मुलाकात की जिसके आधार पर एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट तैयार की।

जुलाई 2011- न्यायविद् राजू रामचन्द्रन ने इस रिपोर्ट पर अपना नोट सुप्रीम कोर्ट में रखा। सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय लिया कि रिपोर्ट को गोपनीय रखा जाएगा और कोर्ट ने गुजरात सरकार व एसआईटी को रिपोर्ट देने से इनकार कर दिया।

सितंबर 2011- सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला ट्रायल कोर्ट पर छोड़ा कि क्या मोदी या अन्य से पूछताछ की जा सकती है।

8 फरवरी 2012 - एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की कोर्ट में पेश की।

10 अप्रैल 2012- मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष रखी गई एसआईटी रिपोर्ट में माना गया कि तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी की इस नरसंहार में कोई भूमिका नहीं है।

इस मामले में ट्रायल के दौरान चार लोगों की मौत हो चुकी थी। नरसंहार मामले में अभी तक 338 से ज्यादा लोगों की गवाही हुई। सितंबर 2015 में ही इस मामले का ट्रायल खत्म हो गया था।