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चुनी हुई सरकारों की शक्तियां छीन अराजकता फैला रही है केंद्र सरकार: उत्तराखंड हाई कोर्ट

उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के फैसले पर केंद्र सरकार को एक बार
फिर हाई कोर्ट से फटकार का सामना करना पड़ा है। उत्तराखंड हाई कोर्ट ने कहा है
कि राष्ट्रपति शासन लगा कर केंद्र चुनी हुई सरकार की
शक्तियों को छीन रहा है और अराजकता फैला रहा है। साथ ही
कोर्ट ने कहा कि सदन में शक्ति परीक्षण को उसकी पवित्रता
से वंचित नहीं किया जा सकता है।
हाई कोर्ट की नैनीताल बेंच ने कहा कि भ्रष्टाचार और
खरीद-फरोख्त के आरोपों के बावजूद बहुमत को परखने का एकमात्र
संवैधानिक तरीका सदन मे शक्ति परीक्षण ही है,
जो अभी होना बाकी है।
कोर्ट ने केंद्र सरकार की खिंचाई करते हुए यह भी कहा कि
राष्ट्रपति शासन सिर्फ असाधारण मामलों में लगाया जाना चाहिए।
इससे पहले सोमवार को भी उत्तराखंड की हाई कोर्ट ने केंद्र
सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि राज्यपाल 'केंद्र सरकार का एजेंट'
नहीं है। हाई कोर्ट उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री
हरीश रावत की राष्ट्रपति शासन को चुनौती देने
वाली याचिका की सुनवाई कर रहा था। हाई कोर्ट के
चीफ जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा, 'आपातकालीन शक्तियों का
उपयोग कुछ विशेष मामलों में ही किया जाना चाहिए। राज्य के मामलों में
हस्तक्षेप को हल्के में नहीं लिया जा सकता है।'
इस महीने की शुरुआत में कोर्ट ने केंद्र सरकार की
याचिका की सुनवाई टालने की अपील को भी
खारिज कर दिया था। केंद्र सरकार ने राज्य में 27 मार्च को राष्ट्रपति शासन लगा दिया
था। इसके एक दिन पहले 26 मार्च को उत्तराखंड के तत्कालीन
मुख्यमंत्री हरीश रावत को विधानसभा में विश्वास मत साबित
करने के लिए राज्यपाल ने आमंत्रित किया था। अपने फैसले का बचाव करते हुए केंद्र
सरकार ने कोर्ट में शपथपत्र दाखिल करते हुए कहा था कि राज्य में संवैधानिक
मशीनरी पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी
केंद्र सरकार राज्य में राष्ट्रपति शासन
लगाए जाने को लेकर 8 रिपोर्ट सौंप
चुकी है, जिसमें राज्य के
राज्यपाल केके पॉल की रिपोर्ट भी शामिल है। उत्तराखंड में
सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस के कुछ बागी विधायकों के बजट का विरोध
करने बाद सरकार के सामने अल्पमत का संकट पैदा हुआ था।